छछुंदर के सर पर चमेली के तेल-मुहावरे पर कहानी - नियत
छछुंदर के सर पर चमेली के तेल-मुहावरे पर कहानी - नियत
शोभन कि माई रमना सुबह सुबह भगवान का भजन करते करते अपनी झोपड़ी में झड़ू लगा रही और साफ सफाई कर रही थी और भगवान से शिकायत कर रही थी कि प्रभु आपकी माया भी बहुत विचित्र है कब केकरे साथे का क देबे आपे जनतेंन मनई का का पता ऊ त जैसन चाहत है आप नचावत है और ऊ नाचत है और वह अतीत की यादों में खो गयी।
जब उसको देखने शोभन के बाबा गए थे देखने का रुतबा रहा बैल गाड़ी से पूरे लाव लश्कर के साथ आये रहे उनके सामने हमारे बापू की हैसियत बहुत छोट त ना रही फिर भी लड़की वाले हमेशा छोटे होते।
बाबू जीत बहादुर बिटिया की खुशी खातिर सगरो इंतज़ाम किये रहे कहे कि शोभन के बाबा थोड़ा बहुत टिफिनबाज जरूर रहे बात बात में नुक्स निकारेका उन कर आदत रहे।
दिल के दयावान रहे बाबू की व्यवस्था से बहुत खुश रहे औऱ बोले जीत बहादुर तोहार बिटिया हमे भा गइल है हम वोके अपने बेटवा लखन खातिर पसंद करता हई बाकिर देखिहे भाई जीत बहादुर बरातीं के सेवा स्वागत में कौनो कमी ना रहे चाहे त एक लूगा में रमना के विदा कर दिह।
दान दहेज हमे चाहे नाही बाबू शोभन के बाबा धर्म चंद के बड़े आदर सम्मान के साथ विदा किहेन ।
शोभन के बाबा लौट के गयेन और वियाहे के दिन धराई के बाबू के सनेसा भेजवाएंन वियाहे विदा होइके ससुरारी गाईन।
ऊंहा देखा कि धर्म चंद के शान शौकत सोचे ना रहेन कि इतना अच्छा घर हमरो नसीब लिखा बा दिन भर गांव की मेहरारू लड़की आवत जात और सास शामली सबके घुघट खोल खोल हमार चेहरा दिखावे।
राती भवा और आधी रात के शोभन के बाबू आयेंन सबसे पहिले ढिबरी के उजाले में घुघट उठायन बहूंते बतियायन और सो गयेन।
हम भगवान के बार बार हाथ जोरी जोरी धनबाद देई बाबू हमें पढावे लिखवे के बहूंते कोशिश किएन मगर माई रमीया बार बार बाबू से लड़त इहे कहे पढ़ लिखके का रमना कलक्टर बने।
चौका बर्तन खाना पकाना सिलाई कड़ाई सीखे द इहे एकरे काम आई बाकिर हमे कौनो शिकायत नाही रहे कारण लखन बहूते नेक मनई हमार मनसेधू मिलन रहे।
बाकिर एक मनाई रहा बहूंते शैतान ऊ रहा विधूना ऊ लखन के पट्टीदारी के भाई लागत रहा ऊ ससुरा जब आवे इतने कहे भौजाई एसन लगतिन जैसन #छछुंदर के सर चमेली के तेल# जब विधूना जहर जैसन बोले तब तब रमना के कारेजा में एसन लागे जैसे तीर वेधत।
ऊ अपने मनसेधू लखन से बार बार ई बातीके शिकायत करें त लखन हमेशा इहे कहे ऊ नायलायक तोहे रिगावे खातिर बोल्अत होई वोकरे नियत में कौनो खोट नाही है मगर बार बार
रमना अपने मनसेधु के समझावे ई मनई ठिक नाही बा लेकिन लखन के भरोसे नाही होत वियाह भए पांच वारिश बीत चुका रहा शोभन पैदा भइल सब कुछ ठीक ठाक बितात रहा ई बीच शोभन के बाबा जीत बहादुर धर्म चंद गुज़रिगयेन और मालिकाना लखन के हाथ आई गवा।
लखन बहुत कायदे से घर परिवार खेती बारी सभसलेंन लेकिन ऊ ससुरा विधूना त जैसे हमारे परिवार के कुंडली में राहु केतु सुक शनि सब बनी उतरी आएल
जब लखन के बाबू शोभन के बाबा गूजेंन त वरासत दर्ज करावे में विधूना मिली भगत से लखन के सगरो हिस्सा पता नही कैसे अपने नावे लिखवाई लिहस चुप मारीक़े बैठ गवा और जब चकबंदी आये त सब मामला खुला ।
शोभन के बाबू कही के नाही रहन ना घरी के ना घाट के ऊ बुर्बकाई ई किये की वरासत दर्ज करावे खातिर कुछ दौड़ भाग नाही किएहन और वोकर जिम्मा विधुने के दे दिहिंन विधूना जाली कागज पत्तर बनवाईके उन्हें पकड़ाई दिहेस जब चकबन्दी आये तब लखन के अपने बुर्बकाई पर शर्मिंदा भयेन मगर का करीसकतेन ।
जब लखन दावा किहेन तब से खेत ना विधूना जोत सकत ना हम सरकार कॉर्ट के फैसला तक अपने निगरानी में रँखे बा ससुरा विधूना भयवद ना होइके दुश्मने होई गइल पता नाही कौने जनम के बदला लिहस सहीये हमे साबित कर दिहलस की छछुंदर अब दिन रात चिचियात हई जौंन ससुरा हमारे डोली उतरते कहेस #छछुंदर के सर पे चमेली का तेल#
ससुरा तेल लेलीहस सर लेलीहस और चैन लेलीहस।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखुर उत्तर प्रदेश।।
अदिति झा
14-Feb-2023 12:52 AM
Nice 👍🏼
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Gunjan Kamal
13-Feb-2023 11:52 AM
बहुत खूब
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Milind salve
12-Feb-2023 03:30 PM
शानदार
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